Years later, Basant potter's lamps are now being sold hands-on

छत्तीसगढ़ न्यूज़ वेबमीडिया सालों बाद बसंत कुम्हार के दीये अब हाथों-हाथ बिक रहे : मिट्टी के दीये से घर रौशन करने शासन की अपील से कुम्हारों को मिला पुनर्जीवन
रायपुर 23, अक्टूबर 2019

कई वर्षों के बाद इस साल बंसत की दीपावली में चार चांद लगने वाले हैं। उनके द्वारा कच्ची मिट्टी और चाक से बनाए गए दीये इस साल हाथो-हाथ बिक रहे हैं। सालों पुरानी परम्परा को पुनर्जीवित होते देख बसंत का चेहरा भी खिल उठा है। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने पुश्तैनी धंधे को छोड़कर दूसरा रास्ता अपनाने की मंशा को भी अलविदा कह दिया है।

    धमतरी के विंध्यवासिनी वार्ड में रहने वाले श्री बसंत कुम्भकार बचपन से मिट्टी से निर्मित बर्तन, दीये, कलश, धूपदानी सहित भगवान गणेश, शंकर, दुर्गा, लक्ष्मी आदि की मूर्तियां बनाकर बेचते हैं। यह काम उन्हें परम्परागत रूप से अपने पूर्वजों से विरासत में मिला है। उनके पिता के अलावा दादा, परदादा भी मिट्टी के बरतन, मूर्ति और घरेलू उपकरण बनाकर अपना जीविकोपार्जन करते थे। बावन वर्षीय श्री बंसत ने बताया कि आज से करीब 10-12 वर्ष पहले तक उनका पुश्तैनी व्यवसाय अच्छा चलता था। इससे बेहतर आमदनी भी हो जाती थी, जो कि उनके परिवार के लिए पर्याप्त थी। इसी बीच चाइना सहित विदेशी एवं इलेक्ट्रॉनिक सामानों के बाजार में सस्ती दर पर उतर जाने से जैसे लोगों ने मुंह मोड़ लिया। मार्केट में 10-12 साल पहले की अपेक्षा एक-चौथाई से भी कम बिक्री होने लगी। इससे उनकी आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती चली गई। यहां तक कि बसंत ने इस साल के बाद अगले साल से पीढ़ियों से चले आ रहे मिट्टी के व्यवसाय को बंद कर कोई दूसरा काम ढूंढने तक का मन बना लिया था।
    श्री बसंत ने बताया कि प्रदेश सरकार द्वारा पारम्परिक विरासतों को सहेजने तथा उन्हें पुनर्जीवित करने के विशेष प्रयास किया जा रहा है। जिला प्रशासन द्वारा भी मिट्टी से निर्मित दीयों को खरीदने की अपील की गई है। इसका आमजनता में व्यापक और सकारात्मक असर हुआ है। पिछले 4-5 दिनों से मिट्टी के दीये खरीदने वालों की भीड़ लगातार बढ़ रही है। इलेक्ट्रॉनिक लाइटों व झूमरों की जगह लोग मिट्टी के दीये और मूर्तियां लेना पसंद कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि जहां एक दिन में वे सिर्फ 500 दीये बनाते थे, अब 1000-1200 दीये रोजाना बना रहे हैं। वहीं इनकी खपत व आमदनी बढ़ने से सालों की मायूसी काफूर हो गई है। बसंत ने बताया कि उनकी पत्नी श्रीमती लता बाई, बेटी भावना व बेटा खिलेश्वर भी उनके काम में मदद कर रहे हैं, जिससे कि मांग के आधार पर दीये, ग्वालिन, लक्ष्मी की मूर्ति, कलश आदि समय पर बन सके।
    प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा प्रदेश की संस्कृति, प्राचीन धरोहरों और पारम्परिक कार्यों को पुनर्जीवित करने अनेक योजनाएं चलाई जा रही है। सुराजी गांव योजना का नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी सहित हरेली, तीज पर्व पर सार्वजनिक अवकाश, गौठानों में दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा जैसे त्यौहार के जरिए परम्परागत विरासतों को सहेजने का कार्य राज्य शासन द्वारा किया जा रहा है। इसी तारतम्य में दीपावली पर्व पर प्रदेशवासियों से मिट्टी के दीये खरीदने तथा अपने साथ-साथ गरीब कुम्हार परिवारों के घर भी रौशन करने का आव्हान किया गया, जिससे कि माटीपुत्र कुम्हार जीवन-यापन के अपने पारम्परिक व्यवसाय से पलायन न कर पाए।

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