छत्तीसगढ़ न्यूज़ वेबमीडिया रायगढ़ : जिला न्यायाधीश रायगढ़ द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग 200 के 18 प्रकरणों का निराकरण : मध्यस्थ द्वारा दिए गए अवार्ड को अपास्त किया गया
रायगढ़, 22 अक्टूबर 2019
भारत सरकार द्वारा घोषित राष्ट्रीय राजमार्ग विकास योजनान्तर्गत राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-200 (नया रा.रा.क्र.-49)पर (बिलासपुर-उर्दावल सेक्शन) 238.500 किलो मीटर से 310.900 किलो मीटर तक की भूमि का चौड़ीकरण/चार लेन बनाने हेतु भिन्न-भिन्न ग्रामों से भूमि अर्जन की गई तथा राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनिमय 1956 के अंतर्गत अधिसूचना प्रकाशित की गई। आपत्तियों का निराकरण किया गया तथा अर्जन की जाने वाली भूमि की प्रकृति अर्थात सिंचित, असिंचित, व्यपवर्तित दो-फसली, राष्ट्रीय राजमार्ग से लगी हुई भूमि के आधार पर उसका मूल्य अवधारित किया गया साथ ही साथ प्रभावित होने वाली अन्य परिसम्पत्तियों जैसे भूमि पर निर्मित मकान, ट्यूबवेल, वृक्ष इत्यादि का मूल्यांकन कर उसका अंतिम मूल्य निर्धारित किया गया जिससे क्षुब्ध होकर भिन्न-भिन्न भूमिस्वामियों के द्वारा मध्यस्थ के समक्ष आवेदन पेश किया गया। मध्यस्थ के द्वारा अवार्ड पारित किया गया और इस अवार्ड के विरूद्ध राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के द्वारा जिला न्यायाधीश रायगढ़ के समक्ष अवार्ड को अपास्त किए जाने हेतु माध्यस्थम् एवं सुलह अधिनियम 1996 की धारा-34 के अंतर्गत आवेदन पेश किया गया जिसमें 18 अक्टूबर 2019 को 18 प्रकरणों का निराकरण हुआ और मध्यस्थ द्वारा दिए गए अवार्ड को अपास्त किया गया।
जिला न्यायाधीश रायगढ़ के द्वारा मध्यस्थ के अवार्ड को अपास्त करते समय यह पाया गया कि मध्यस्थ के द्वारा मध्यस्थता प्रक्रिया का समुचित पालन नहीं किया गया। केन्द्रीय मूल्यांकन बोर्ड के द्वारा जो मार्गदर्शक सिद्धांत वर्ष 2015-16 के प्रावधान में उसका समुचित रूप से पालन नहीं किया गया तथा यह पाया गया कि कई भूमिस्वामियों ने भी अधिसूचना के पश्चात अपने भूमि का बाजार मूल्य प्रभावित करने का कार्य किए। मध्यस्थ के द्वारा अर्जन में प्रभावित भूमि 0.050 हेक्टेयर तक की होने पर बाजार मूल्य प्रति वर्ग मीटर की दर से व उससे अधिक होने वाली भूमि का बाजार मूल्य प्रति हेक्टेयर की दर से गणना करने का जो अवार्ड पारित किया गया था उसमें मध्यस्थ के द्वारा मार्गदर्शक सिद्धांत का समुचित रूप से पालन नहीं किया गया था उसे अपास्त किया गया और न्यायालय के द्वारा यह अवधारित किया गया कि राष्ट्रीय राजमार्ग जनकल्याण के लिए भूमि का अर्जन कर मार्ग का निर्माण कर रही है जो किसी भी दृष्टि से 0.050 हेक्टेयर की भूमि नहीं हो सकती। राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण के लिए भू-अर्जन अधिकारी के द्वारा भूमि का अर्जन कर राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को उपलब्ध कराना होता है। क्षतिपूर्ति रकम जमा करने पर अर्जन की जाने वाली भूमि राष्ट्रीय राजमार्ग के लिए उपलब्ध हो जाती है इसलिए ऐसे मामलों में वर्ग मीटर के आधार पर भूमि का बाजार मूल्य गणना करना त्रुटिपूर्ण था अपितु समस्त भूमि का मूल्यांकन हेक्टेयर दर से उस भूमि के प्रकृति के अनुसार करने पर ही भूमि के मूल्य में एकरूपता बनी रहेगी और तभी प्रत्येक भूमिस्वामी को अर्जन की जाने वाली भूमि के अनुपात में क्षतिपूर्ति की राशि वितरित हो सकेगी और यह साम्य न्याय और शुद्ध अंतरूकरण के अंतर्गत मान्य किए जाने योग्य होगा तथा राष्ट्रीय राजमार्ग निर्मित हो जाने से उनकी शेष भूमि या लगी हुई भूमि का बाजार मूल्य भी स्वतरू बढ़ जायेगा। इस प्रकार अनुविभागीय अधिकारी सह-भूअर्जन अधिकारी के द्वारा निर्धारित किए गए मुआवजा को मध्यस्थ के द्वारा बढ़ाकर दी गई मुआवजा अवार्ड राशि को उपरोक्त समस्त 18 प्रकरणों में जिला न्यायाधीश के द्वारा अपास्त कर दिया गया।
रायगढ़, 22 अक्टूबर 2019
भारत सरकार द्वारा घोषित राष्ट्रीय राजमार्ग विकास योजनान्तर्गत राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-200 (नया रा.रा.क्र.-49)पर (बिलासपुर-उर्दावल सेक्शन) 238.500 किलो मीटर से 310.900 किलो मीटर तक की भूमि का चौड़ीकरण/चार लेन बनाने हेतु भिन्न-भिन्न ग्रामों से भूमि अर्जन की गई तथा राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनिमय 1956 के अंतर्गत अधिसूचना प्रकाशित की गई। आपत्तियों का निराकरण किया गया तथा अर्जन की जाने वाली भूमि की प्रकृति अर्थात सिंचित, असिंचित, व्यपवर्तित दो-फसली, राष्ट्रीय राजमार्ग से लगी हुई भूमि के आधार पर उसका मूल्य अवधारित किया गया साथ ही साथ प्रभावित होने वाली अन्य परिसम्पत्तियों जैसे भूमि पर निर्मित मकान, ट्यूबवेल, वृक्ष इत्यादि का मूल्यांकन कर उसका अंतिम मूल्य निर्धारित किया गया जिससे क्षुब्ध होकर भिन्न-भिन्न भूमिस्वामियों के द्वारा मध्यस्थ के समक्ष आवेदन पेश किया गया। मध्यस्थ के द्वारा अवार्ड पारित किया गया और इस अवार्ड के विरूद्ध राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के द्वारा जिला न्यायाधीश रायगढ़ के समक्ष अवार्ड को अपास्त किए जाने हेतु माध्यस्थम् एवं सुलह अधिनियम 1996 की धारा-34 के अंतर्गत आवेदन पेश किया गया जिसमें 18 अक्टूबर 2019 को 18 प्रकरणों का निराकरण हुआ और मध्यस्थ द्वारा दिए गए अवार्ड को अपास्त किया गया।
जिला न्यायाधीश रायगढ़ के द्वारा मध्यस्थ के अवार्ड को अपास्त करते समय यह पाया गया कि मध्यस्थ के द्वारा मध्यस्थता प्रक्रिया का समुचित पालन नहीं किया गया। केन्द्रीय मूल्यांकन बोर्ड के द्वारा जो मार्गदर्शक सिद्धांत वर्ष 2015-16 के प्रावधान में उसका समुचित रूप से पालन नहीं किया गया तथा यह पाया गया कि कई भूमिस्वामियों ने भी अधिसूचना के पश्चात अपने भूमि का बाजार मूल्य प्रभावित करने का कार्य किए। मध्यस्थ के द्वारा अर्जन में प्रभावित भूमि 0.050 हेक्टेयर तक की होने पर बाजार मूल्य प्रति वर्ग मीटर की दर से व उससे अधिक होने वाली भूमि का बाजार मूल्य प्रति हेक्टेयर की दर से गणना करने का जो अवार्ड पारित किया गया था उसमें मध्यस्थ के द्वारा मार्गदर्शक सिद्धांत का समुचित रूप से पालन नहीं किया गया था उसे अपास्त किया गया और न्यायालय के द्वारा यह अवधारित किया गया कि राष्ट्रीय राजमार्ग जनकल्याण के लिए भूमि का अर्जन कर मार्ग का निर्माण कर रही है जो किसी भी दृष्टि से 0.050 हेक्टेयर की भूमि नहीं हो सकती। राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण के लिए भू-अर्जन अधिकारी के द्वारा भूमि का अर्जन कर राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को उपलब्ध कराना होता है। क्षतिपूर्ति रकम जमा करने पर अर्जन की जाने वाली भूमि राष्ट्रीय राजमार्ग के लिए उपलब्ध हो जाती है इसलिए ऐसे मामलों में वर्ग मीटर के आधार पर भूमि का बाजार मूल्य गणना करना त्रुटिपूर्ण था अपितु समस्त भूमि का मूल्यांकन हेक्टेयर दर से उस भूमि के प्रकृति के अनुसार करने पर ही भूमि के मूल्य में एकरूपता बनी रहेगी और तभी प्रत्येक भूमिस्वामी को अर्जन की जाने वाली भूमि के अनुपात में क्षतिपूर्ति की राशि वितरित हो सकेगी और यह साम्य न्याय और शुद्ध अंतरूकरण के अंतर्गत मान्य किए जाने योग्य होगा तथा राष्ट्रीय राजमार्ग निर्मित हो जाने से उनकी शेष भूमि या लगी हुई भूमि का बाजार मूल्य भी स्वतरू बढ़ जायेगा। इस प्रकार अनुविभागीय अधिकारी सह-भूअर्जन अधिकारी के द्वारा निर्धारित किए गए मुआवजा को मध्यस्थ के द्वारा बढ़ाकर दी गई मुआवजा अवार्ड राशि को उपरोक्त समस्त 18 प्रकरणों में जिला न्यायाधीश के द्वारा अपास्त कर दिया गया।
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