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As per his claim he has tried to something new for friendship day 2010 and the resulting friendship day video is here and watch -
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Babu Jagjivan Ram
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Chhattisgarh in National Development Council Meeting
Chhattisgarh Development Battle in New Delhi - Chhattisgarh Chief Minister Dr. Raman Singh along with his Chhattisgarh team of Officers and colleagues is in 55th National Development Council meet in New Delhi, India, Chaired by Indian Prime Minister Dr. Manmohan Singh.
The main highlights are - Remaining Ten Districts of Chhattisgarh to be included in Food Security Mission
Demand for Rice Research Center to be Open in the Chhattisgarh State
Central Mineral Bill Must take care of the interests of tribals and Scheduled Areas in CG
Demand for the Value Edition and revenue sharing provision in Prospecting Mineral License
4553 crore for seven naxal-affected districts for integrated action plan to be sanctioned soon
Read Full Hindi Chhattisgarh News about Dr. Raman Singh presentation for Chhattisgarh Development plans and prospects in NDC
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4553 crore for seven naxal-affected districts for integrated action plan to be sanctioned soon
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राष्ट्रीय विकास परिषद की 55वीं बैठक : मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ के हितों से जुड़े अनेक मुद्दों पर रखी अपनी बात
खाद्य सुरक्षा मिशन में शेष दस जिलों को भी शामिल किया जाए
राज्य में चावल अनुसंधान केन्द्र खोलने की मांग
केन्द्रीय खनिज विधेयक में अनुसूचित क्षेत्रों और आदिवासियों के हितों का ध्यान रखना जरूरी
खनिज प्रॉस्पेक्टिंग लायसेंस के लिए वेल्यू एडिशन और राजस्व में हिस्सेदारी का प्रावधान करने की मांग
नक्सल प्रभावित सात जिलों के लिए 4553 करोड़ रूपए की एकीकृत कार्य योजना को जल्द मंजूरी दी जाए : डॉ. रमन सिंह
राष्ट्रीय विकास परिषद की आज नई दिल्ली में आयोजित बैठक में छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान और केन्द्रीय भू-तल परिवहन मंत्री श्री कमलनाथ की सौजन्य मुलाकात।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने आज नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में प्रदेश के हितों से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह सहित परिषद के सदस्यों का ध्यान आकर्षित किया। डॉ. रमन सिंह ने छत्तीसगढ़ में कृषि विकास के लिए एक रणनीति की जरूरत बतायी और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन में राज्य के शेष दस जिलों को भी शामिल करने की मांग रखी। अभी इस मिशन में छत्तीसगढ़ के आठ जिले शामिल हैं। उन्होंने छत्तीसगढ़ मुख्य फसल धान का उल्लेख करते हुए राज्य में चावल अनुसंधान केन्द्र की स्थापना और प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में खेती में सुधार के उपाय ढूंढने के लिए विशेष अनुसंधान केन्द्र खोलने का भी आग्रह किया।
राष्ट्रीय विकास परिषद की आज नई दिल्ली में सम्पन्न बैठक में छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने केन्द्रीय वित्त मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी और केन्द्रीय भू-तल परिवहन मंत्री श्री कमलनाथ से भी मुलाकात की।
डॉ. रमन सिंह ने राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों की तरह गैर अनुसूचित क्षेत्रों में भी लघु सिंचाई योजनाओं के लिए 90 प्रतिशत केन्द्रीय सहायता देने, वामपंथी उग्रवाद (नक्सल) प्रभावित क्षेत्रों के सात जिलों के लिए राज्य शासन द्वारा तैयार 4553 करोड़ झपए की एकीकृत कार्य योजना को योजना आयोग से मंजूरी दिलाने की भी मांग रखी। मुख्यमंत्री ने कहा कि केन्द्रीय खनिज नीति पर आधारित प्रस्तावित विधेयक की धारा 22 में सीधे प्रास्पेटिंग लायसेंस देने की योजना के बदले खनिज धारक क्षेत्रों में सर्वाधिक वेल्यू एडिशन और राजस्व में हिस्सेदारी का ऑफर देने वाली कम्पनियों को ही लायसेंस दिए जाने का प्रावधान किया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि वर्तमान स्वरूप में इस प्रस्तावित विधेयक में अनुसूचित क्षेत्रों के हितों के लेकर कोई विशेष प्रावधान नहीं है। इसलिए इस विधेयक को कानून बनाना आदिवासी बहुल खनिज धारक क्षेत्रों और आदिवासियों के हितों के विपरित होगा। इसलिए इसमें हुदा कमेटी की अनुशंसा के आधार पर यह प्रावधान करना जरूरी होगा कि यदि किसी खनिज क्षेत्र में प्रॉस्पेक्टिंग लायसेंस के लिए एक से अधिक आवेदक हों तो वेल्यू एडिशन का ऑफर देने वाले आवेदक को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
डॉ. रमन सिंह ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, उपाध्यक्ष योजना आयोग डॉ. मोनटेक सिंह अहलुवालिया और केन्द्रीय मंत्रियों, राज्यों के मुख्यमंत्रियों तथा परिषद के अन्य सदस्यों को संबोधित करते हुए अपनी शुभकामनाएं दी। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने कहा कि ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के मध्यावधि मूल्यांकन हेतु आयोजित राष्ट्रीय विकास परिषद की इस बैठक में उपस्थित सभी महानुभावों को मैं छत्तीसगढ़ राज्य की जनता की ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ। परिषद की आज की बैठक में चर्चा हेतु निर्धारित सभी विषय अत्यंत महत्वपूर्ण एवं सामयिक हैं। मैं आशा करता हूं कि इन महत्वपूर्ण विषयों पर परिषद द्वारा चर्चा उपरांत लिए जाने वाले निर्णयों से देश और राज्यों के सर्वांगीण विकास की गति में तेजी आएगी।
डॉ. रमन सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य का गठन ही क्षेत्रीय विषमताओं और असंतुलित विकास के कारण हुआ। वर्ष 2000 में राज्य के गठन के बाद से छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था में सुधार की गति में तेजी आई है। यह बात योजना आयोग द्वारा तैयार की गई ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना की मध्यावधि मूल्यांकन रिपोर्ट से भी स्पष्ट होती है। मुझे यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है कि ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना हेतु सकल घरेलू उत्पाद के लिए निर्धारत लक्ष्य 9.57% की तुलना में वर्ष 2007-08 में 11.71%, 2008-09 में 6.81% तथा 2009-10 में 11.49% की वृध्दि दर हासिल की गई है। वर्ष 2007-08 में राज्य आयोजना का आकार 7,413 करोड़ रूपये था, जो वर्ष 2010-11 के लिए 13,093 करोड़ रूपये हो गया है। मुझे यह उल्लेख करते हुए भी हर्ष है कि राज्य में वित्तीय अनुशासन तथा बेहतर राजकोषीय प्रबंधन के फलस्वरूप राज्य के राजकोषीय संकेतक देश के श्रेष्ठ राज्यों के समकक्ष रहे हैं।
डॉ. रमन सिंह ने आगे कहा कि आज की बैठक के लिए निर्धारित विषयों पर अपने विचार व्यक्त करने के पूर्व मैं माननीय प्रधानमंत्री जी का ध्यान संक्षेप में निम्नानुसार कुछेक महत्वपूर्ण विषयों की ओर आकर्षित करना चाहूँगा :- (1) केन्द्र प्रवर्तित योजनाएं प्रारंभ करने के पश्चात् इनमें वर्ष दर वर्ष राज्यांश का प्रतिशत बढ़ा दिया जाता है। इससे राज्य के सीमित संसाधनों के कारण केन्द्र प्रवर्तित परियोजनाओं के सतत परिचालन में वित्तीय कठिनाईयाँ उत्पन्न होती हैं। इस व्यवस्था में सुधार होना चाहिए। (2) देश की अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में सुधार की प्रक्रिया चल रही है। विक्रय कर के स्थान पर मूल्य संवर्धित कर लागू किया गया और अब मूल्य संवर्धित कर के स्थान पर वस्तु एवं सेवा कर लागू करने के प्रस्तावों पर चर्चा चल रही है। इससे व्यापार और उद्योग जगत को तो फायदा होगा, किन्तु प्रस्तावित नयी प्रणाली का लघु उद्योगों, आम जनता और राज्यों की वित्तीय स्थिति एवं राजकोषीय संप्रभुता पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव का पूर्ण विश्लेषण तथा उसके स्थायी उपाय सुनिश्चित करने की पूर्ण तैयारी के बाद ही प्रस्तावित नयी व्यवस्था को लागू किया जाना चाहिए।
कृषि विकास के लिए रणनीति
बैठक में डॉ. रमन सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य की 80% आबादी की आजीविका कृषि एवं कृषि से संबंधित क्षेत्रों पर निर्भर है। कृषि पर निर्भर 33 लाख परिवारों में से 54% लघु एवं सीमांत किसान हैं। राज्य की मुख्य फसल चावल होने से छत्तीसगढ़ की पारंपरिक पहचान ''धान के कटोरे'' के रूप में रही है। दसवीं पंचवर्षीय योजना में कृषि विकास की दर 5.17% एवं ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के प्रथम तीन वर्षों के दौरान 3.03% रही है। राज्य में कृषि विकास को गति देने की आवश्यकता है। इस संबंध में केन्द्रीय सरकार से हमारी निम्नलिखित अपेक्षाएं हैं:- (1) राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन में चावल के लिए राज्य के 18 जिलों में से केवल 8 जिलों को शामिल किया गया है। शेष 10 जिलों को भी मिशन की परिधि में लाया जाए। (2) राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन में गेहूँ के लिए राज्य के उत्तरी जिलों कोरिया, जशपुर एवं अंबिकापुर को भी शामिल किया जाए। (3) राज्य की मुख्य फसल चावल होने से हम छत्तीसगढ़ में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा चावल अनुसंधान केन्द्र की स्थापना करने की मांग लंबे समय से कर रहे हैं। इसे शीघ्र पूर्ण किया जाए। (4) राज्य में लगभग 32% जनसंख्या जनजातियों की है जिसकी कृषि प्रणालियाँ पारंपरिक रूप से भिन्न हैं। अतएव राज्य के जनजाति क्षेत्रों की कृषि उत्पादकता में सुधार हेतु भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा जनजातीय क्षेत्रों की कृषि में सुधार के उपाय ढूंढने के लिये विशेष अनुसंधान केन्द्र स्थापित किया जाए। (5) राज्य में राष्ट्रीय बायोटिक स्ट्रेस मैनेजमेंट इंस्टीटयूट की स्थापना की जाए।(6) भारत सरकार द्वारा देश के पूर्वी क्षेत्र में हरित क्रांति के लिए चालू वर्ष में 400 करोड़ रूपये का प्रावधान रखा गया है। इस योजना के उद्देश्य एवं आवश्यकता के प्रकाश में यह राशि बढ़ायी जाए।
जल संसाधन विकास
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने परिषद की बैठक में कहा कि वर्ष 2000 में राज्य के गठन के समय राज्य में सिंचाई का प्रतिशत लगभग 23% था, जो नये राज्य के प्रयासों से ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के प्रारंभ तक 30% हो गया था। वर्ष 2012 तक सिंचाई प्रतिशत 32.25% होना अनुमानित है। राज्य सरकार द्वारा जल संसाधनों के विकास एवं सिंचाई क्षमता बढ़ाने के लिए बजट प्रावधान में निरंतर वृध्दि की गई है। इस हेतु ए.आई.बी.पी. के तहत प्राप्त केन्द्रीय सहायता भी उपयोगी रही है। छत्तीसगढ़ राज्य में विशेष परिस्थितियों के कारण ए.आई.बी.पी. के मानदण्डों में निम्नलिखित बदलाव आवश्यक हैं :- (1) राज्य का 50% से अधिक भौगोलिक क्षेत्र आरक्षित, संरक्षित और राजस्व वनों के अंतर्गत आने के कारण सिंचाई परियोजनाओं का निर्माण प्रारंभ करने के पूर्व एफ.सी.ए. क्लीयरेंस में समय और अतिरिक्त व्यय भी लगता है। इस कारण्ा लघु तथा मध्यम सिंचाई परियोजनाओं को पूर्ण करने के लिए निर्धारित क्रमश: 2 एवं 4 वर्षों की कालावधि को बढ़ाकर 3 एवं 5 वर्ष किया जाना चाहिए। (2) लघु सिंचाई परियोजनाओं के लिए वर्ष 2006 में निर्धारित की गई प्रति हैक्टेयर व्यय सीमा को 1.50 लाख रूपये से बढ़ाकर 2.50 लाख रूपये प्रति हैक्टेयर किया जाना चाहिए। (3) अनुसूचित क्षेत्रों की भांति गैर अनुसूचित क्षेत्रों की लघु सिंचाई योजनाओं के लिए भी 90% केन्द्रीय सहायता दी जानी चाहिए। (4) छत्तीसगढ़ में नदियों और बड़े नालों पर एनीकट का निर्माण कर सिंचाई क्षमता में वृध्दि करने की बहुत अच्छी संभावनाएं हैं। किन्तु ए.आई.बी.पी. में एनीकट निर्माण शामिल नहीं है, जिसे शामिल किया जाना चाहिए।
विद्युत उत्पादन, कोयले की उपलब्धता तथा पर्यावरण प्रबंधन
डॉ. रमन सिंह ने आगे कहा कि राज्य में कोयले के बड़े भण्डार उपलब्ध होने और विद्युत उत्पादन हेतु आवश्यक जल की उपलब्धता के कारण छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत उत्पादन की राष्ट्रीय आवश्यकता के बड़े भाग की पूर्ति करने की क्षमता रखता है। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में राज्य सेक्टर के लिए 1750 मेगावाट, केन्द्रीय सेक्टर के लिए 3980 मेगावाट और निजी सेक्टर के लिए 2570 मेगावाट विद्युत उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। राज्य सेक्टर की दो बड़ी परियोजनाओं, जिनके निर्माण की दिशा में काफी प्रगति हो चुकी थी, को छत्तीसगढ़ के हसदेव अरंड कोलफील्ड्स के कोलब्लॉकों का आबंटन वर्ष 2003 एवं 2004 में हुआ था। किन्तु केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से एफ.सी.ए. क्लीयरेंस न मिलने के कारण इन परियोजनाओं का काम बंद हो गया है। इसी प्रकार केन्द्रीय सेक्टर की 4000 मेगावाट की सरगुजा अल्ट्रामेगा पावर परियोजना के लिए भी केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से कोयला खनन की अनुमति नहीं मिल पा रही है। इसके कारण कुल 6640 मेगावाट की विद्युत परियोजनाओं की प्रगति अवरूध्द हो गयी है। इस संबंध में मैं माननीय प्रधानमंत्री जी से केवल यह अनुरोध करना चाहता हूँ कि जिन विद्युत परियोजनाओं का काम आगे बढ़ चुका है, केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा उनके कोल ब्लाक्स को एफ.सी.ए. क्लीयरेंस दिया जाना चाहिए और इस संबंध में जो भी नये मानदंड निर्धारित किये जाने हाें, उन्हें केवल भविष्य की परियोजनाओं के लिए लागू किया जाए। महोदय, जो राज्य अपनी भूमि, जल संसाधन एवं अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराकर अन्य राज्यों के लिए विद्युत बनाते हैं, उन्हें कम्पनसेट किया जाना चाहिए। यदि ऐसा होता है, तो प्रचुर कोयला भण्डारों वाले राज्य अन्य राज्यों की विद्युत आपूर्ति के लिए पिटहैड पावर प्लांट स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित होंगें। हमारी लंबे समय से मांग रही है कि कानून में विद्युत उत्पादन पर भी सेस या डयूटी लगाने का प्रावधान किया जाए, ताकि विद्युत के निर्यातक राज्य कम्पनसेट हो सकें। जहाँ तक कोयले से विद्युत उत्पादन से उद्भूत पर्यावरण प्रबंधन का प्रश्न है, इस संबंध में मुझे यह कहना है कि हम केवल देश के कोयला भण्डारों से ही देश को सस्ती बिजली दे सकते हैं। कोयले से भिन्न स्त्रोतों से विद्युत उत्पादन के विकल्प देश की अर्थव्यवस्था और आम आदमी के लिए महंगे होगें। अत: पर्यावरण संबंधी लक्ष्यों की प्राप्ति प्रोन्नत तकनीकों तथा ऊर्जादक्ष मशीनों का उपयोग करके की जानी चाहिए।
शहरीकरण
बैठक में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री का यह कहना था कि शहरीकरण की वर्तमान नीति एवं कार्यक्रमों में महानगरों एवं बड़े शहरों पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। छत्तीसगढ़ और दूसरे पिछड़े राज्यों, जिनमें महानगर एवं बड़े नगर नगण्य हैं और जिनमें छोटे और मध्यम कस्बों और नगरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, में नगरीय विकास की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पा रही है।मेरा सुझाव है कि भारत सरकार को बड़े शहरों के साथ-साथ पिछड़े राज्यों के छोटे और मध्यम नगरीय क्षेत्रों के विकास पर भी ध्यान देना चाहिए। इससे एक ओर तो नगरीय विकास में क्षेत्रीय असंतुलन दूर होगा, वहीं दूसरी ओर बड़े शहरों की ओर पलायन की गति में कमी आएगी। इस संबंध में मैं दूसरी बात यह कहना चाहूंगा कि केन्द्र एवं राज्यों के आर्थिक संसाधनों के सीमित होने के कारण शहरी गरीबों की आवासीय समस्या बढ़ती जा रही है। इसके समाधान हेतु निजी क्षेत्र की पूंजी आकर्षित करना आवश्यक है। इसके लिए ऐसी सुविचारित नीति बनाने की आवश्यकता है जिससे निजी क्षेत्र के पूंजी निवेशक, मध्यम एवं सम्पन्न वर्गों के लोगों के लिए मकान बनाने के साथ-साथ गरीब वर्ग के लोगों के लिए मकान बनाने के लिए भी आकर्षित हों।
आदिवासी विकास
उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के भौगोलिक क्षेत्रफल का 60 प्रतिशत क्षेत्रफल अनुसूचित क्षेत्र है और राज्य का 50% क्षेत्र वन क्षेत्र है। राज्य की 32% आबादी अनुसूचित जनजातियों की है जिनके विकास और कल्याण को राज्य सरकार सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है। मैं छत्तीसगढ़ राज्य में आदिवासी विकास हेतु किये गये कुछेक प्रयासों को गिनाना चाहूंगा :-(1) राज्य के आयोजना बजट की 32% राशि आदिवासी उपयोजना के लिए रखी जाती है। (2) राज्य के अनुसूचित जनजाति बाहुल्य दक्षिणी एवं उत्तारी क्षेत्रों के लिए दो क्षेत्रीय आदिवासी विकास प्राधिकरण गठित किये गये हैं। इनके माध्यम से आदिवासी क्षेत्रों के लिए अत्यावश्यक अधोसंरचना कार्यों एवं तत्काल आवश्यकता वाले कार्यों के लिए प्राधिकरणों की बैठकों में ही स्वीकृति देते हुए आवश्यक धनराशि उपलब्ध करायी जाती है। इन प्राधिकरणों के माध्यम से अब तक 420 करोड़ रूपये की धनराशि स्वीकृत की गई है। (3) लगभग 2 लाख 15 हजार आदिवासी परिवारों को वनाधिकार पत्र दिये गये हैं, जो कि देश के किसी भी अन्य राज्य से अधिक हैं। (4) अनुसूचित क्षेत्रों में शिक्षा के विस्तार हेतु और विशेष रूप से तकनीकी एवं रोजगारोन्मुखी शिक्षा सुलभ कराने के लिए विगत तीन वर्षों में उल्लेखनीय कदम उठाये गये हैं। इसमें से कुछ इस प्रकार हैं -(i) आदिवासी बाहुल्य बस्तर क्षेत्र के लिए जगदलपुर विश्वविद्यालय और सरगुजा क्षेत्र के लिए सरगुजा विश्वविद्यालय की स्थापना, (ii) बस्तर के नगर जगदलपुर में मेडिकल कॉलेज़ की स्थापना, (iii) 21 नये कालेज, 6 नये पॉलीटेकनिक एवं 9 नये आई.टी.आई. की स्थापना, (iv) 800 से अधिक नये आश्रम स्कूल तथा छात्रावासों की स्थापना, (5) त्रिस्तरीय वनोपज सहकारी संस्थाओं के माध्यम से तेन्दूपत्ताा, साल बीज, हर्रा और गोंद वनोपजों के संग्रहण तथा मार्केटिंग की व्यवस्था करके इनके संग्रहण्ाकर्ताओं को अधिकतम मूल्य उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया जा रहा है। (6) लघुवनोपज संग्राहकों के लिए बीमा योजना व अन्य कल्याणकारी योजनाएं लागू की गई हैं। आदिवासी क्षेत्रों के विकास को गति देने के लिए कुछेक मुद्दों पर केन्द्रीय सरकार से विशेष सहायता आवश्यक है जो इस प्रकार हैं -(1) अनुसूचित क्षेत्रों में छात्रावासों, आश्रम भवनों और शिक्षक आवास गृह निर्माण के लिए धनराशि की कमी है। इस विषयक एल.डब्ल्यू.ई. प्रभावित जिलों की आवश्यकता की पूर्ति तो योजना आयोग द्वारा स्वीकृत की जाने वाली एल.डब्ल्यू.ई. विकास योजना के माध्यम से हो सकेगी। मेरा निवेदन है कि इस हेतु एल.डब्ल्यू.ई. से अप्रभावित आदिवासी क्षेत्रों के लिए भी एकमुश्त राशि उपलब्ध करायी जाए। (2) छत्तीसगढ़ में 2 लाख 15 हजार से अधिक जिन आदिवासी परिवारों को भूमि के वनाधिकार पत्र दिये गये हैं, उन्हें वित्तीय संस्थाओं से ऋण प्राप्त नहीं हो रहा है। वनाधिकार देने का पूर्ण उद्देश्य तभी प्राप्त हो सकेगा जब हितग्राही को भूमि विकास तथा लघु सिंचाई के लिए ऋण की व्यवस्था भी हो। इस बाबत् नाबार्ड द्वारा योजना बनायी जानी चाहिए। (3) केन्द्रीय सरकार लघु वनोपजों के लिए भी कृषि उत्पादों की भांति न्यूनतम समर्थन मूल्य की योजना लागू करे।
वामपंथी उग्रवाद
राज्य की नक्सल समस्या का उल्लेख करते हुए डॉ. रमन सिंह ने बैठक में कहा कि वर्तमान में वामपंथी उग्रवाद छत्तीसगढ़ राज्य की प्रमुख समस्या है। राज्य में वामपंथी उग्रवाद की समस्या से जूझने के लिए वर्ष 2004-05 से गंभीर प्रयास किये गये हैं। इस कालावधि में पुलिस बजट को 268 करोड़ रूपये से बढ़ाकर 1020 करोड़ किया गया है, पुलिस बल की संख्या 22,250 से बढ़ाकर 50 हजार की गयी है, तथा विशेष आसूचना तंत्र की स्थापना और कमाण्डों यूनिट्स का गठन किया गया है। राज्य में एक जंगल युध्द एवं आतंकवाद प्रतिरोधी कॉलेज तथा तीन सी.आई.ए.टी. स्कूल स्थापित किये गये हैं जिनमेें छत्तीसगढ़ के अतिरिक्त अन्य राज्यों तथा केन्द्रीय पुलिस बलों के हजारों पुलिस कर्मी प्रशिक्षण ले चुके हैं। मैं केन्द्रीय सरकार का आभार व्यक्त करना चाहूँगा कि वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों के विकास के लिए इन्टिग्रेटेड एक्शन प्लान के लिए विशेष सहायता देने हेतु पहल की गई है। राज्य के वामपंथी उग्रवाद से व्यापक रूप से प्रभावित 7 जिलों के लिए हमने 4553 करोड़ रूपये की एक समन्वित कार्य योजना, योजना आयोग को भेजी है। आशा है कि इसकी औपचारिक स्वीकृति शीघ्र मिल जाएगी। वामपंथी उग्रवाद से व्यापक रूप से प्रभावित 7 जिलों के अतिरिक्त राज्य के 6 अन्य जिले भी वामपंथी उग्रवाद से आंशिक रूप से प्रभावित हैं। इन क्षेत्रों के विकास के लिए भी समन्वित कार्य योजना बनाकर विशेष सहायता उपलब्ध करायी जानी चाहिए।वामपंथी उग्रवाद पर काबू पाने के लिए हमें प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत बनाते हुए इन क्षेत्रों में अधोसंरचना निर्माण तथा विकास की गति को बढ़ाना है। बस्तर क्षेत्र में रोड कनेक्टिविटी तथा आवश्यक अधोसंरचना की कमी को दूर करने में एक बड़ी कठिनाई निर्माण एजेंसियों की उपलब्धता न होना है। इस संबंध में मेरा सुझाव है कि बस्तर से गुजरने वाले 3 राष्ट्रीय राजमार्गों को सीमेन्ट काँक्रीट रोड बनाने तथा अन्य आवश्यक निर्माण कार्यों के लिए भारत सरकार एक सक्षम निर्माण एजेंसी उपलब्ध कराए, साथ ही इस क्षेत्र में कार्यरत बार्डर रोड आर्गेनाइजेशन की यूनिटों की संख्या बढ़ाई जाए। प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए हमें राज्य पुलिस बल में त्वरित गति से वृध्दि करना आवश्यक है, जिसके लिए पुलिस प्रशिक्षण हेतु अतिरिक्त प्रशिक्षण शालाएं खोलना और पुलिस आवास व्यवस्था बढ़ाने की भी आवश्यकता होगी। इस हेतु भी अतिरिक्त केन्द्रीय सहायता उपलब्ध करायी जाए।
अब मैं माननीय प्रधानमंत्री जी का ध्यान दो ऐसे बिन्दुओं की ओर आकर्षित करना चाहूंगा जिन्हें वामपंथी उग्रवाद के कारणों से जोड़ा जाता है। ये बिन्दु हैं (1) मायनिंग पॉलिसी तथा कानून एवं (2) लघुवनोपजों पर ''पेसा'' के प्रावधान लागू करना।
खनिज नीति तथा कानून
डॉ. रमन सिंह ने कहा कि सर्वप्रथम मैं इस भ्रामक कुप्रचार के संबंध में कि छत्तीसगढ़ में निजी कम्पनियों व अंतर्राष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा खनन कार्य किये जाने के कारण उग्रवाद पनप रहा है, इस सदन को इस तथ्य से अवगत कराना चाहूंगा कि राज्य में 86.14% कोयला खनन भारत सरकार के उपक्रम एस.ई.सी.एल. द्वारा और 98.71% लौह अयस्क (आयरन ओर) का खनन भारत सरकार के उपक्रम एनएमडीसी तथा सेल द्वारा किया जा रहा है। खनिजधारी क्षेत्रों के लोगों द्वारा लम्बे समय से विभिन्न फोरमों में यह मांग की जाती रही है कि मायनिंग से होने वाले लाभ में से विकास के लिए पर्याप्त धनराशि खर्च करने की नीति बनायी जाए। किन्तु इस सम्बन्ध में स्थिति असंतोष जनक है। छत्तीसगढ़ में बहुत लंबे समय से कोयला व आयरन ओर का खनन करने वाली सरकारी कम्पनियों द्वारा खनन कार्य से अर्जित मुनाफे का नगण्य हिस्सा ही पिछड़े खनिजधारी क्षेत्रों के स्थानीय विकास पर खर्च किया जाता है, जिसमें तत्काल सुधार की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक महत्वपूर्ण निर्णय में, जिसे समथा निण्र् ाय के नाम से जाना जाता है, यह मार्गदर्शी सिध्दांत प्रतिपादित किया गया है कि अनुसूचित क्षेत्रों में कार्य करने वाली कम्पनियों को अपने लाभ की कम से कम 20% राशि स्थानीय अधोसंरचना निर्माण तथा अन्य विकास व कल्याण कार्यों में खर्च करनी चाहिए। वर्तमान में इन कार्यों पर मुनाफे की 2.5% से भी कम राशि ही खर्च की जाती है, जिसे अविलम्ब बढ़ाकर 10% करना आवश्यक है और फिर इसे धीरे-धीरे बढ़ाकर 20% से 25% तक किया जाना चाहिए।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि खनिज खनन से संबंधित एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा केन्द्रीय खान मंत्रालय द्वारा तैयार किये गये नये मायनिंग बिल के संबंध में है। इस बिल की धारा 22 में ''डायरेक्ट प्रास्पेक्टिंग लायसेंस'' देने की स्कीम ''जो पहले आए, सो लायसेंस पाए'' को अकाटय सिध्दांत मानकर बनायी गयी है, जबकि ''सर्वाधिक वेल्यू एडिशन तथा रेवेन्यू शेयरिंग ऑफर करने वाले को लायसेंस'' का सिध्दांत अपनाना आवश्यक और वांछनीय है। योजना आयोग द्वारा राष्ट्रीय खनिज नीति के संबंध में गठित हुदा समिति द्वारा भी यह स्पष्ट अनुशंसा की गई थी कि यदि किसी क्षेत्र के प्रासपेक्टिंग लायसेंस के लिए एक से अधिक आवेदक हों तो वैल्यू एडीशन का आफर देने वाले आवेदक को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इस अनुशंसा को भी बिल में नजर अंदाज किया गया है। इस बिल के संबंध में दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें अनुसूचित क्षेत्रों के बारे में कोई विशिष्ट प्रावधान हैं ही नहीं, जो किये जाने चाहिए। देश के अधिकांश खनिजधारी क्षेत्र पिछड़े राज्यों व नक्सल प्रभावित आदिवासी क्षेत्रों में हैं, और वर्तमान स्वरूप में ही इस बिल को कानून बनाना अनुसूचित जनजाति बाहुल्य खनिजधारी क्षेत्रों तथा अनुसूचित जनजातियों के हितों के विपरीत होगा। अतएव मायनिंग बिल को स्वीकृति देने के पूर्व इसमें मेरे द्वारा अभी दिये गये दोनों सुझावों के प्रकाश में सुधार किया जाना चाहिए अन्यथा इसके क्रियान्वयन में कठिनाइयाँ आएंगी।
लघु वनोपजों पर पेसा (PESA) लागू करना
परिषद की बैठक में वनवासियों के आर्थिक हितों और लघु वनोपजों का मुद्दा उठाते हुए डॉ. रमन सिंह ने कहा कि कुछेक समय से वामपंथी उग्रवाद का एक कारण अनुसूचित क्षेत्रों में लघु वनोपजों को पेसा के प्रावधान लागू न होना भी बताया जा रहा है। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में यह बात लघु वनोपज संग्राहकों द्वारा या वन समितियों या निर्वाचित पंचायतों या अनुसूचित क्षेत्रों के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा न उठाई जाकर बाहर के लोगों द्वारा की जा रही है। महोदय, यह एक महत्वपूर्ण विषय है जिसके लिए छत्तीसगढ़ राज्य में वर्तमान प्रभावशील व्यवस्था को समझना आवश्यक है। हमने त्रिस्तरीय वनोपज सहकारी संस्थाओं के माध्यम से तेन्दुपत्ता, साल बीज, आदि लघु वनोपजों के संग्रहण, भण्डारण, मार्केटिंग की व्यवस्था बनाकर इसके संग्रहण कर्ताओं को लघु वनोपजों का अधिक से अधिक मूल्य उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया है। लघु वनोपजों के संग्रहण एवं उनके मूल्य तथा बोनस के संवितरण की व्यवस्था संग्राहकों की निर्वाचित सहकारी संस्थाओं के माध्यम से ही की जाती है, जिससे ''पेसा'' की मूल अवधारणा की पूर्ति हो रही है। जिला स्तरीय और राज्य स्तरीय सहकारी संघ लघु वनोपजों के भण्डारण व मार्केटिंग की व्यवस्था कर संग्रहणकर्ताओं को ''बेस्ट मार्केट प्राइस'' उपलब्ध कराना सुनिश्चित करते हैं। हमारे मत में जब तक वर्तमान स्कीम से बेहतर कोई वैकल्पिक स्कीम, जो क्रियान्वयन की दृष्टि से व्यवहारिक भी हो, की व्यवस्था नहीं बना ली जाती, छत्तीसगढ़ राज्य की वर्तमान व्यवस्था को भंग करने से लघु वनोपज संग्राहकों को वनोपजों की मार्केटिंग में बड़ी कठिनाई आयेगी एवं उन्हें आर्थिक हानि उठानी पड़ सकती है। हमारा मत है कि लघु वनोपजों के संग्रहण , भण्डारण और मार्केटिंग के संबंध में विभिन्न राज्यों में प्रभावशील वर्तमान व्यवस्थाओं का अध्ययन किया जाना चाहिए और फिर, ऐसे मॉडल का चयन किया जाना चाहिए जिससे लधु वनोपज संग्राहकों को सर्वाधिक लाभ मिले। तत्पश्चात् लघु वनोपजों के संबंध में लागू वर्तमान कानूनों में से जिस जिस कानून में बदलाव आवश्यक हो, उसमें बदलाव किया जाना चाहिए। इस सबंध में मैं अंतिम बात यह कहना चाहूँगा कि राज्य सरकार द्वारा वर्तमान में क्रियान्वित की जा रही योजना में बदलाव तभी किया जाना उचित होगा जब केन्द्रीय सरकार लघु वनोपजों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य के निर्धारण और उपार्जन की योजना प्रारंभ करें।
डॉ. रमन सिंह ने प्रधानमंत्री और परिषद के सभी सदस्यों का आभार व्यक्त करते हुए उम्मीद जतायी कि जिन विषयों पर उनके द्वारा प्रधानमंत्री और परिषद का ध्यान आकर्षित किया गया है, उनके बारे में केन्द्र सरकार एवं योजना आयोग सकारात्मक निर्णय लेगें। डॉ. रमन सिंह ने कहा कि मुझे पूर्ण आशा है कि आज के विचार-विमर्श के परिप्रेक्ष्य में लिये जाने वाले निर्णयों से देश एवं राज्यों के त्वरित विकास को गति मिलेगी।
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